Saturday, November 5, 2011

कली का दिल फटा...

कली का दिल फटा...पुष्प महका***बांस का दिल छिदा...बाँसुरी बना
सीप का दिल कटा...मोती जन्मा***आदमी का दिल टूटा...क्या हुआ?
न सुगंध, न सुर, न मोल, एक अनाम दर्द वह भी लापता

प्याज़-लहसुन से भी परहेज़ करने वाली माएँ, चाक़ू से छिलवा कर
... मरवा देती हैं बेटियाँ अपनी ही गोद में, आखिर क्या पाप हुआ था
जो ये अबोध धड़कने कत्ल हुईं?
किसी मजबूरी का बहाना न बनाना, मजबूर तो वेश्यांए होती हैं!
किटी पार्टियों में बहलने की हदों के आगे तक आज़ाद है आज की नारी|
हकीकत तो ये है बतौर फेशन हत्यारिन बनी हो तुम मासूमों को गर्भ में मारने वाली माताओं
क्या तुमने भविष्य के गर्भ में झाँका है?
अरी! निर्दयी ह्रदयहीनो वर्तमान से ही सबक लेती तुमने देखा नही क्या
देश की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठी है एक महिला कल तुम्हारी जन्मी भी तो
ऐसी हो सकती थी!

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