Saturday, January 14, 2012

Pawan Chauhan






मैं बस एक राज़ हूँ,
एक दिन गुमनाम दफ़्न हो जाऊंगा,
तेरे कूचे में भटकता हुआ,
कोई बदनाम ज़ख्म हो जाऊंगा।

मेरे प्याले से तेरे रूह की प्यास ना बुझी,
अब मैखाने में मनाया हुआ रस्म हो जाऊंगा।
वक़्त भी मसलने की कोशिश क्यूँ करेगा,
दीवारों में दरार बन ख़त्म हो जाऊंगा,

ख्यालों में उलझी हुई, नज़्म तुम समझो,
या चादर में लिपटा पागल कोई पतझड़,
किसी महफ़िल में उड़ाया हुआ,
एक जशन हो जाऊंगा।

मैं बस एक राज़ हूँ,
एक दिन गुमनाम दफ़्न हो जाऊंगा।

Pawan Chauhan ♥ ♥ ♥

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