Friday, January 6, 2012

बेटी बोझ नहीं लाठी है...!








बेटी बोझ नहीं लाठी है...!

आज के युग में लोगों के लिए बेटा ही सबकुछ है। बेटी उसेबोझ लगती है। अब आधुनिकता के कारण पता चल जाता है कि गर्भ में पलने वाला भू्रण लड़का है या फिर लड़की। यदि बेटा होता है तो परिजन खुशी का ठिकाना नहीं रहता। वह मोहल्ले में हजारों रुपए की मिठाई बांट देते हैं। मगर, हमारे देश की बिड़वना है कि बेटी होने पर उसकी गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है। उसके परिजन बोझ समझता है। उस समय किसी क...ो पता नहीं रहता है कि जिस की हत्या की जा रही है वह बुढ़ापे में उसकी लाठी होगी।
जीवनभर की खून पसीने की कमाई से बेटे का पालन-पोषण किया जाता है। भले ही बाद वह बुढ़ापे में सहारा नहीं बने। देश का कानून सख्त हुआ और उसने भू्रण की हत्या करने वाले पर सजा की मंशा बनाई। मगर, कहते है कि कोई कितना भी पहरा लगाए, लेकिन हरकत करने वाला कभी नहीं चुकता। आज संस्कार और सामाजिकता को निखाने वाली बेटियां ही कम हो रही हैं। उनके प्रति समाज सचेत तो है, लेकिन जागरूक नहीं। इसका परिणाम क्या होगा? इसका जबाव आने वाली पीढ़ी से मिल सकता है, जो धरा पर आने से भी डर रही है।
खुशी की बात है कि आने वाले समय में महिलाओं के प्रति अपराध कम हो जाएगें, लेकिन अपराध से बड़ा अपराध लोगों के सामने आएगा। शादी के लिए लोगों के बीच खून-खराबा होगा। ऐसे में मुझें नहीं लगता है कि अपराध पर अंकुश लगेगा। 25 वर्ष पूर्व ही सामाजिक विशेषज्ञों ने कहा था कि जिस दहेज समस्या से पीड़ित होकर समाज कन्या भु्रण हत्याएं कर रहा है। वह उसके लिए अंतिम हल नहीं है। बल्कि, इससे आने वाले युग में जो अपराध होंगे वह अधिक भयानक होगें, जिसकी कल्पना करने से भी रूह कापती है। अभी लड़कियां पर्याप्त है, इसलिए लड़के इधर-उधर नजरें मारकर काम चलाते हैं। कहने का तात्पर्य है कि जब उनकी संख्या कम होगी, तो उनके इर्द-गिर्द सैकड़ों लड़के नजर आएगें। रास्तों में भीड़ रहेगी, सड़कों पर जाम लग जाएगा। कुछ ऐसी निर्मित होगी कि कोई महिला राष्ट्रपति निकलने वाली हो। दहेज देने की उलटी रस्म शुरू होगी और वर पक्ष नाक रगड़ते हुए लड़की का हाथ मांगने पहुंचेगा। फिर कहा जाएगा कि तू इंतजार कर, अभी तेरा नंबर लाइन में है। लड़की सही समय पर मिल गई तो ठीक है वरना अंतिम समय तक कुंवारा रहना पड़ेगा। लड़कियां नहीं होने से एक दिन ऐसा संकट आयेगा, जिससे कोई वर्ग अछूता नहीं रहेगा। इसके बाद नारीवादी लेखक भी मांग और पूर्ति के सिंद्धातों पर विचारधीन होगा। पुरूष अधिक होंगे तो उनकी मांग कम और स्त्री संख्या में कम है तो उनकी मांग अधिक होगी। देश में मांग बढ़ जाएगी और उसकी पूर्ति कम होने पर क्या स्थिति निर्मित होगी? इसका तो भगवान ही मालिक है। कन्या भु्रण हत्याओं के बारे में विशेषज्ञों की चेतावानी को अनदेखा करते हुए जिस तरह समाज आगे बढ़ रहा है, उसका परिणाम दुध का दुध और पानी का पानी है। 
 
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