हिन्दु धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है । यह वेदों पर आधारित धर्म है जो अपने अन्दर कई तरह की उपासना पद्धतियाँ, मत और सम्प्रदाय समेटे हुए है ।अनुयायियों की संख्या के आधार पर यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है । हिन्दु धर्म के अधिकतर उपासक हमारे देश में हैं । इसमें कई देवी देवताओं की पूजा की जाती है परन्तु वास्तव में यह एकेश्वरवादी धर्म है । हिन्दु केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं अ...पितु जीवन जीने की एक पद्धति है । हिन्दु धर्म एक धर्म से ज्यादा जीवन जीने का मार्ग है । इसके अन्तर्गत कई मत और सम्प्रदाय आते हैं और सभी को बराबर श्रृद्धा दी जाती है ।
हिन्दु धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं :
वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं) , शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते है) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं) । लेकिन ज्यादातर हिन्दु स्वंय को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं ।
प्रचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी सम्प्रदायों को परस्पर आश्रित बताया ।
यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते हैं, जबकि ऐसा नहीं है । जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ति एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुई है वह धर्म या संस्कृति भारतीय(हिन्दु) कैसे हो सकती है ।
विश्व में भारत के अतिरिक्त किसी भी देश में जातिवाद नहीं है । भारत में जातिवाद का आरम्भ लगभग छठी शताब्दी मेँ हुआ । देशवासियों को यह जानना अति आवश्यक है कि जातिवाद को कुछ इंसानों ने समाज में अपनी विचारधाराओं को थोपा है । इसके फलस्वरूप आज हमें अपने समाज में जातिगत विभाजन देखने को मिलता है । हमारे देश के विकास के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि जातिवाद को समाप्त करने का सामूहिक प्रयास किया जाए !
जहाँ तक जातियों की बात करें तो यह एक तरह के औपचारिक समाजिक संगठन हैं जिनका निर्माण कर्म एवं विचार के आधार पर किया गया था । यदि हम समाज में कर्म के आधार पर बँटवारे को देखें तो यह चारों जातियाँ बनी रहेंगी ! यह अलग बात है कि कुछ लोग इन्हें जन्म के आधार पर तय करने लगे हैं क्योंकि इससे उनको अपनी समाजिक प्रतिष्ठा बनाने का अवसर मिलता है ।
पहले हम जातियों के कर्मों को देखें -
ब्राहम्ण : समाज के लोगों को शिक्षा तथा राज काज को परामर्श देने के साथ ही समाज के लिए चिन्तन करना !
क्षत्रिय : समाज की रक्षा करने के लिए तत्पर रहकर अस्त्र शस्त्र धारण करना !
वैश्य : व्यापार आदि कर के समाज की सेवा करना !
शुद्र : इन तीनों के अलावा अन्य कार्य शुद्र सेवा में आते हैं !
हमारे पौराणिक ग्रन्थ तो यह मानते हैं कि इंसान प्रतिदिन इन चार वर्णों या जातियों में भ्रमण करता है । वह सुबह उठता है तब अपनी साफ सफाई करता है , यह उसका शुद्र कर्म है ! उसके बाद वह भक्ति भाव से भगवान का नाम लेता है और अपने परिवार के लोगों को समय समय पर शिक्षा तथा परामर्श देता है, यह ब्राहम्णोत्व का प्रमाण है ! उसके बाद वह अपने परिवार के लिए काम पर जाता है, यह उसके वैश्य होने का प्रमाण है ! रात्रि को वह अपने घर में सोता है तब उसके आश्रित अपने माता पिता के रहते हुए एक सुरक्षा का अनुभव करते हैं ।समय आने पर माता पिता अपने बच्चों के लिए लड़ने तक को तैयार हो जाते हैं, यह क्षत्रित्व का प्रमाण है !
जितने भी पौराणिक ग्रन्थ हैं उनमें जन्म के आधार पर जाति का कहीं उल्लेख नहीं मिलता ! कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म के आधार पर ही इन जातियों या वर्णों का निर्माण हुआ ।
क्या देश में समाज से कभी जातिवाद समाप्त हो सकता है ?
अपने देश और हिन्दु धर्म को विकास की ओर ले जाने के लिए हमें इस जातिवाद को जड़ से समाप्त करना होगा और यह कोई एक दिन का काम नहीं है । इसकी जड़ें बहुत मज़बूत हैं इसलिए इसे समाप्त करने के लिए हमें लगातार प्रयास करने होंगे ।
उदाहरण के तौर पर हमने यह अक्सर देखा है की हमारे देश में लोग एक दुसरे को नाम से कम और उपनाम से ज्यादा बुलाते हैं जैसे शर्मा जी, वर्मा जी इत्यादि । यदि हम स्वयं ही पुकारने वाले को टोक देंगे कि मुझे मेरे नाम से बुलाओ और सभी लोगों को इसके लिए जागरूक करेंगे तो जातिवाद को काफी हद तक ख़त्म किया जा सकता है ।
हिन्दु धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं :
वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं) , शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते है) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं) । लेकिन ज्यादातर हिन्दु स्वंय को किसी भी सम्प्रदाय में वर्गीकृत नहीं करते हैं ।
प्रचीनकाल और मध्यकाल में शैव, शाक्त और वैष्णव आपस में लड़ते रहते थे जिन्हें मध्यकाल के संतों ने समन्वित करने की सफल कोशिश की और सभी सम्प्रदायों को परस्पर आश्रित बताया ।
यद्यपि कुछ लोग कई संस्कृति के मिश्रित रूप को ही भारतीय संस्कृति मानते हैं, जबकि ऐसा नहीं है । जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ति एवं विकास भारत भूमि पर नहीं हुई है वह धर्म या संस्कृति भारतीय(हिन्दु) कैसे हो सकती है ।
विश्व में भारत के अतिरिक्त किसी भी देश में जातिवाद नहीं है । भारत में जातिवाद का आरम्भ लगभग छठी शताब्दी मेँ हुआ । देशवासियों को यह जानना अति आवश्यक है कि जातिवाद को कुछ इंसानों ने समाज में अपनी विचारधाराओं को थोपा है । इसके फलस्वरूप आज हमें अपने समाज में जातिगत विभाजन देखने को मिलता है । हमारे देश के विकास के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि जातिवाद को समाप्त करने का सामूहिक प्रयास किया जाए !
जहाँ तक जातियों की बात करें तो यह एक तरह के औपचारिक समाजिक संगठन हैं जिनका निर्माण कर्म एवं विचार के आधार पर किया गया था । यदि हम समाज में कर्म के आधार पर बँटवारे को देखें तो यह चारों जातियाँ बनी रहेंगी ! यह अलग बात है कि कुछ लोग इन्हें जन्म के आधार पर तय करने लगे हैं क्योंकि इससे उनको अपनी समाजिक प्रतिष्ठा बनाने का अवसर मिलता है ।
पहले हम जातियों के कर्मों को देखें -
ब्राहम्ण : समाज के लोगों को शिक्षा तथा राज काज को परामर्श देने के साथ ही समाज के लिए चिन्तन करना !
क्षत्रिय : समाज की रक्षा करने के लिए तत्पर रहकर अस्त्र शस्त्र धारण करना !
वैश्य : व्यापार आदि कर के समाज की सेवा करना !
शुद्र : इन तीनों के अलावा अन्य कार्य शुद्र सेवा में आते हैं !
हमारे पौराणिक ग्रन्थ तो यह मानते हैं कि इंसान प्रतिदिन इन चार वर्णों या जातियों में भ्रमण करता है । वह सुबह उठता है तब अपनी साफ सफाई करता है , यह उसका शुद्र कर्म है ! उसके बाद वह भक्ति भाव से भगवान का नाम लेता है और अपने परिवार के लोगों को समय समय पर शिक्षा तथा परामर्श देता है, यह ब्राहम्णोत्व का प्रमाण है ! उसके बाद वह अपने परिवार के लिए काम पर जाता है, यह उसके वैश्य होने का प्रमाण है ! रात्रि को वह अपने घर में सोता है तब उसके आश्रित अपने माता पिता के रहते हुए एक सुरक्षा का अनुभव करते हैं ।समय आने पर माता पिता अपने बच्चों के लिए लड़ने तक को तैयार हो जाते हैं, यह क्षत्रित्व का प्रमाण है !
जितने भी पौराणिक ग्रन्थ हैं उनमें जन्म के आधार पर जाति का कहीं उल्लेख नहीं मिलता ! कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म के आधार पर ही इन जातियों या वर्णों का निर्माण हुआ ।
क्या देश में समाज से कभी जातिवाद समाप्त हो सकता है ?
अपने देश और हिन्दु धर्म को विकास की ओर ले जाने के लिए हमें इस जातिवाद को जड़ से समाप्त करना होगा और यह कोई एक दिन का काम नहीं है । इसकी जड़ें बहुत मज़बूत हैं इसलिए इसे समाप्त करने के लिए हमें लगातार प्रयास करने होंगे ।
उदाहरण के तौर पर हमने यह अक्सर देखा है की हमारे देश में लोग एक दुसरे को नाम से कम और उपनाम से ज्यादा बुलाते हैं जैसे शर्मा जी, वर्मा जी इत्यादि । यदि हम स्वयं ही पुकारने वाले को टोक देंगे कि मुझे मेरे नाम से बुलाओ और सभी लोगों को इसके लिए जागरूक करेंगे तो जातिवाद को काफी हद तक ख़त्म किया जा सकता है ।
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